17 March 2011

यध्यद्विभूतिमतसत्वं श्रीमदुजित्मेव वा।

तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेओंश संभवम॥(श्रीमद भगवत गीता 41/10)

भावार्थ: जहां-जहां तेज का अंश(प्रभावी व्यक्तित्व-विशेष प्रतिभा) है,

वह मेरा ही प्रगट अंश -स्वरूप है।

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