22 February 2015

अजीब सा पेनापन चाहती है दुनिया,
लग जाये तो शोर मचाती है दुनिया.

कुछ न कुछ तो यहा छुपाना पडेगा,
नंगे फकीर को मार-भगाती है दुनिया.

आदत मुखोटो की पड गइ सो पड गइ,
खुदा को भी वही पहनाती है दुनिया.

“मनन” लगता है तुम सीधे बहोत हो ,

बस्ती से दुर समशान बसाती है दुनिया,