अजीब सा पेनापन
चाहती है दुनिया,
लग जाये तो शोर
मचाती है दुनिया.
कुछ न कुछ तो यहा
छुपाना पडेगा,
नंगे फकीर को
मार-भगाती है दुनिया.
आदत मुखोटो की पड गइ
सो पड गइ,
खुदा को भी वही पहनाती है दुनिया.
“मनन” लगता है तुम
सीधे बहोत हो ,
बस्ती से दुर समशान
बसाती है दुनिया,